Atiq Ahmed Murder Case : ऐसे हुआ अतीक के आतंक का अंत, कैसा रहा डॉन के राजनेता से लेकर 'कब्र' तक का सफर
आखिरकार अतीक अहमद (62) के आतंक का अंत हो ही गया। यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपराधियों की लिस्ट में टॉप पर रहने वाले माफिया अतीक अहमद का बेहद बुरा अंत हुआ है।

आखिरकार अतीक अहमद (62) के आतंक का अंत हो ही गया। यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपराधियों की लिस्ट में टॉप पर रहने वाले माफिया अतीक अहमद का बेहद बुरा अंत हुआ है। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद के पापों का घड़ा भर चुका था।
दोनों भाइयों को अंत समय में सिर्फ बंदूक की गोली नसीब हुई है। आइये जानते हैं माफिया अतीक के अपराध की दुनिया में कदम रखने से लेकर उसके अंत तक की की सिलसिलेवार कहानी।
1979 से अतीक अहमद के खिलाफ 100 आपराधिक मामले दर्ज हैं। माफिया डॉन से राजनेता बने अतीक अहमद ने 1979 में एक हत्या के मामले में आरोपी के रूप में नाम आने के बाद अपराध की दुनिया में कदम रखा था।
उसके खिलाफ 100 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें लेटेस्ट केस प्रयागराज के धूमनगंज थाने में दर्ज हुआ था। 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या का मामला अतीक के लिए गले की फांस बन गया।
पांच बार के विधायक अतीक 2004 में समाजवादी पार्टी के साथ था। तब वह फूलपुर से सांसद चुना गया था। राज्य पुलिस मुख्यालय के पास उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि अतीक के खिलाफ दर्ज 100 एफआईआर में से 54 मामले राज्य की विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं।
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में गैंगस्टरों के खिलाफ लगातार चलाए जा रहे अभियान में गैंगस्टर एक्ट के तहत अतीक और उसके परिवार के सदस्यों की 150 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क की गई।
कभी प्रयागराज, कौशांबी, नोएडा, लखनऊ और देश के अन्य हिस्सों में अचल संपत्ति के सौदे पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाले, अतीक और उसके भाई का अंत हो चुका है। उसका परिवार अब हाशिये पर है।
इस मामले के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी अतीक और उसके परिवार के पीछे पड़ गया था। प्रयागराज जिला पुलिस और यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स भी राज्य भर में अतीक के परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामलों का विवरण संकलित करने के लिए काम कर रही थी।
अतीक के दो बेटों उमर और अली के खिलाफ राज्य के विभिन्न हिस्सों में कम से कम दो या तीन मामले दर्ज किए गए थे और दोनों अलग-अलग जेलों में हैं, जो बाहर आने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
पहला आपराधिक मामला उमेश पाल की हत्या के मामले में अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन के खिलाफ धूमनगंज थाने में दर्ज किया गया थ। अतीक ने पुलिस रिकॉर्ड में जगह बनाने वाले परिवार के एकमात्र सदस्य के रूप में शुरुआत की। लेकिन जल्द ही परिवार के अन्य लोग भी पुलिस के निशाने पर आ गए।
अतीक के छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ के खिलाफ 40 से ज्यादा आपराधिक मामले लंबित हैं। अतीक 1989 में राजनीति में सक्रिय हुआ। उसने इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की थी।
बाद में, उसने इलाहाबाद पश्चिम सीट को दो बार 1991 और 1993 निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में बरकरार रखा था। 1996 में उसने उसी सीट पर सपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।
1998 में जब सपा ने उसे बाहर का रास्ता दिखाया, तो वह 1999 में अपना दल (एडी) में शामिल हो गया और प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया था। 2002 के विधानसभा चुनाव में उसने फिर से इलाहाबाद पश्चिम सीट से एडी के टिकट पर जीत हासिल की थी।
2003 में अतीक सपा के पाले में लौट आया और 2004 में फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से जीता था। अतीक जनवरी 2005 में सुर्खियों में आया, जब बसपा विधायक राजू पाल की प्रयागराज में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद 2005 में उपचुनाव हुआ और अशरफ ने राजू पाल की विधवा बसपा उम्मीदवार पूजा पाल को हराकर चुनाव जीता था। 2007 के चुनावों में अशरफ ने फिर से सपा से विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन बसपा की पूजा पाल से हार गया था।
अशरफ, राजू पाल हत्याकांड में आरोपी था और फिलहाल बरेली जेल में बंद चल रहा था। पांच साल बाद, 2012 के विधानसभा चुनावों में अतीक ने फिर से उसी सीट से अपना दल से अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन बसपा की पूजा पाल से 8,885 मतों के अंतर से हार गया था।
उसने 2014 में सपा के टिकट पर श्रावस्ती से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गया था। लेकिन अतीक की राजनीतिक महत्वाकांक्षा खत्म नहीं हुई थी। जेल से, उसने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया था, लेकिन उसे केवल 855 वोट ही मिले थे। अंतरराज्यीय गिरोह का सरगना नं. 227, उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2019 में बरेली से अहमदाबाद जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।